27.12.2018
रणजीत सिंह ,झरिया
धनबाद
झरिया बताते चले की चासनाला खान दुर्घटना के 43 साल बाद भी उसकी यादें रोंगटे खड़े कर देती है। इस्को के चासनाला कोयला खदान की दिल दहला देने वाली धटना आज भी यहां के लोगों की आंखो में जिन्दा है। हर धर से किसी न किसी की मौत हुई थी। कोलियरी में चारों तरफ सिर्फ सिसकिया ही सुनाई दे रही थी। 27 दिसंबर 1975 को इस्को के चासनाला कोलियरी में दिन के 1:30 बज रहे थे, तभी अचानक खदान में बिस्फोट हुआ और तेज आवाज के साथ 70 लाख गैलन पानी के सैलाब ने सैकड़ो मजदुरो को अपने आगोश में ले लिया। चासनाला कोलियरी का गर्भ मजदुरों के लिए समाधी बन गया। सैकड़ो मजदुरो की मौत हो गई ।राहत कार्य के लिए संसाधन तक नहीं थे , और न ही राहत कार्य करने का मौका ही मिला ,कितने लोगो की जलसमाधि हुई इसकी सही संख्या आज तक नहीं पता चल सकी। हर साल की तरह आज भी 375 श्रीमिक जलसमाधि लिए शाहिद श्रमिको को नम आंखों से श्रद्धांजलि दी गई , श्रधांजलि देने पीड़ित के परिजन,अधिकारी,श्रमिक नेता एबम स्थानीय लोग शामिल थे43 शाल पहले घटित एशिया की सबसे बड़ी खादान दुर्घटना थी,सनाला खान दुर्घटना पूरे देश को झकझोर दिया था ,घटना के बाद आश्रितों को नियोजन देने की घोषणा की गई थी ,कइयों को नियोजन ओर मुआवजा मिला ,लेकिन इस घटना में ऐसे कई श्रमिक थे जिनके आश्रित नाबालिक थे , घटना के 43 शाल बीत जाने के बाद भी कइयों को अभी तक नियोज ओर मुआवजा नही मिला,कोयला निकालने के प्लान में गड़बड़ी के कारण दुर्घटना हुई थी ,बैरियर का ठीक तरह से निरीक्षण नही किया गया था , और बलास्ट कर दिया गया , जिसके कारण खादान जलमग्न हो गया,ओर प्रबन्धक की लापरवाही के कारण 375 श्रीमिक का जल समाधि हो गए,वही आज शहीद स्मारक स्थल पर आए शहीद नन्द किशोर की पत्नी आसा देवी का कहना है कि कई वर्षों से नियोजन ओर मुआवजा के लिए सेल का चक्कर लगा कर थक गई ,43 वर्स बीत जाने के बाद भी ना ही नियोजन मिला और ना ही मुआवजा ,वही सेल के ईडी अरविंद कुमार ने कहा कि ये खान दुर्घटना बड़ी दुखदायक है इसके बारे में सोच कर रूह कांप जाती है ,