26.12.2018
रणजीत सिंह , झरिया
झरिया के पाथरडीह थाना अंतर्गत चासनाला में 27 दिसम्बर आते ही सेल के चासनाला खदानों में काम कर रहे कोयला खनिकों के रोंगटे सिहर उठते है।27 दिसम्बर 1975 के दिन जब समय लगभग 1बजकर 35 मिनट हो रहा था , तभी अचानक चासनाला के डीप माइंस में पानी भरने का शोरगुल सुनाई देने लगा , कुछ देर बाद पता चला ये शोरगुल सही थी।उसके बाद क्या था धीरे धीरे दिन चढ़ता गया ओर खदान के मुहाने पर खदान में काम करने गए कोयला मजदूरों के परिजन की भीड़ जुटने लगे।देखते ही देखते चासनाला माईनस में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया।लेकिन किसी के परिजन अपने बेटे के बारे में जानकारी जुटा रहा तो किसी की पत्नी अपने पति के बारे में तो कोई बहन अपने भाई के बारे में जानकारी लेने में व्याकुल थे।धीरे धीरे पूरे छेत्र के लोग माईनस के पास जुट गए ,ओर माईनस के पास का पूरा माहौल गमगीन हो गया,इस चासनाला खदान के डीप माइन में यह हादसा इतना भयावह था कि 375 कोयला खनिक एक क्षण में 75 लाख गैलन पानी के चपेट में आकर जलसमाधी ले लिए थे।जैसा कि हादसे के बारे में कहा जाता रहा है कि हादसे का संकेत खदान में कार्यरत मजदुर व सुपरवाइजर ने प्रबंधन को दिया था।उन लोगों ने साफ तौर पर प्रबंधन को आगाह किया था कि खदान के अंदर का डेम कभी भी फट सकता है , जिसके पानी से खदान में भारी नुकसान हो सकता है।मजदूरों ने कहा सुरक्षा के लिहाज से कोयले की कटाई बंद कर देनी चाहिए ।लेकिन प्रबंधन ने मजदूर व सुपरवाइजर की बात को अनसुनी कर मजदूरो को कोयले की कटाई में तेजी लाने का निर्देश दे दिया,तबतोड़ कोयले की कटाई से डेम पर असर आनी सुरु हो गई थी ,जिसका नतीजा ये हुआ कि खदान मे पहले से रिस रहे पानी का डेम पूरी तरह फट गया ,ओर खदान में पानी भर गया।पानी की रफ्तार इतनी तेज थी कि मजदूरों को बाहर निकलने का मौका तक नहीं मिला।सभी मजदूर अपनी जान बचाने के लिए चानक की ओर भागे लेकिन वह भी बचाव स्थल तक नही पहुच सके,क्योकि खदान पानी से पूरी तरह लबालब था । कोई भी खदान से बाहर नही निकल सका था।लेकिन प्रबधंक ने खदान में फंसे मजदूरों को बचाने के लिए रसिया और पोलैण्ड से रेस्क्यू टीम ओर रेस्क्यू सामग्री मंगवाया,क्योंकि भारत के पास ऐसी रेस्क्यू टीम व सामग्री नही थी।टीम ने बचाव कार्य शुरू किया पर किसी को बचा नही सके।20 जनवरी 1976 से खदान के अंदर जलमग्न हुए शवो को निकालने का सिलसिला सुरू हुआ।2 फरवरी तक 356 शवो को निकाली गई जिसमें 246 की पहचान हो सकी।इस धटना की उच्चस्तरीय जांच भी हुई।पहली बार माईनस दुर्घटना में कोर्ट ऑफ इन्क्वारी हुआ दोषियो को सजा भी मिली,लेकिन मृतकों के आश्रितों को आज भी सुविधा से वंचित रखा गया है।हर साल शमाधि स्थल पर अधिकारि, मजदूर ,ओर नेताओ का हुजूम जुटता है और श्रधांजली भी देते है , लेकिन असल श्रद्धाजलि तभी हिगी जब जल समाधी हुए आश्रितों का दुख दर्द और आंसुओ को पोछने का काम प्रबंधन और नेता करेंगे ।