15.09.2019
ब्यूरो रिपोर्ट AKS
धनबाद। झमाडा की बेमियादी हड़ताल के चलते झरिया, करकेन्द , केंदुआ, पुटकी, लोयाबाद, कुस्तौर, गोधर, कतरास जैसे 8 लाख की घनी आबादी वाले क्षेत्रों में भी काफी असर पड़ रहा है।पीने के पानी का अन्य विकल्प नहीं रहने से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।स्थानीय लोगों में जनप्रतिनिधियों के खिलाफ आक्रोश बढ़ता जा रहा है। लोगों का कहना है कि माडा की हड़ताल कोई नई बात नहीं है।पिछले कई दशकों से होती आ रही है।लेकिन किसी ने जलापूर्ति में बार बार हो रहे व्यवधान पर स्थायी समाधान पर ठोस पहल नहीं की।इस बार भी पूर्व से घोषित हड़ताल के तहत जलापूर्ति के लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई है।यही कारण है कि लोग स्थानीय सांसद, विधायक, मेयर को कोसते नहीं थक रहे। ऐसे में जनता 1 ही सवाल पूछ रही है।"जनता कर रही है पानी के लिए हाहाकार, कैसे लाओगे 65 पार।गौरतलब है कि यहाँ पिछले एक साल से माडा द्वारा अनियमित जलापूर्ति की जा रही है । कभी बिजली फॉल्ट , पाइप लीकेज , मोटर की खराबी जैसी वजहों को बता कर नियमित जलापूर्ति नहीं की जा रही है।करकेन्द , केंदुआ आदि क्षत्रों में माडा की जलापूर्ति ही एक मात्र सहारा है।यहाँ कोयला क्षेत्र प्रभावित रहने के कारण बोरिंग या कुँवा आदि की कोई व्यवस्था संभव नहीं है।करकेन्द , केंदुआ , लोयाबाद, गोधर , केंदुआ 4 नम्बर आदि की लाखों की घनी आबादी करकेन्द स्थित माडा की जलमीनार पर ही निर्भर है।इस जलमीनार में जामाडोबा फ़िल्टर प्लांट से पानी आता है।इन सभी जगहों पर बारी बारी से चौथे पांचवे दिन जलापूर्ति की जाती है।कई बार बिजली की समस्या या मोटर अथवा ट्रांसफॉर्मर जलने से स्थिति गंभीर हो जाती है।तब लोगों को आठवें-दसवें दिन पानी मिल पाता है । पानी के वैकल्पिक श्रोतों में इलाके में करकेन्द गोपालीचक कोलियरी स्थित पीट वाटर फ्लो और बरसात का पानी ही एक मात्र सहारा है , जिसे लोग नहाने धोने तथा आकस्मिकता में पीने में भी इस्तेमाल करते हैं , जिससे केंसर तथा अन्य कई तरह की गंभीर बीमारियां होने की आशंका बनी रहती है ।