*मार्क्सवाद युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष पवन महतो एंव भारतीय जनता मजदूर ट़ेड यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष मनोज महतो ने संयुक्त रूप से भगतसिंह की जंयती पर माल्यार्पण किया*
28.09.2020
कतरास/ मार्क्सवाद युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष पवन महतो एंव भारतीय जनता मजदूर ट़ेड यूनियन के प्रदेश अध्यक्ष मनोज महतो ने संयुक्त रूप से भगतसिंह की जंयती पर माल्यार्पण किया। इस अवसर पर मार्क्सवादी युवा मोर्चा के जिला अध्यक्ष पवन महतो ने कहा कि आज पूरा देश शहीद ए आज़म भगत सिंह की जयंती मना रहा है। इस वीर योद्धा को बम-पिस्तौल, सोंडर्स की हत्या, जेल और फाँसी से ज़्यादा नहीं समझते। असल में भगत सिंह की वैचारिकी बिल्कुल साफ़ और स्पष्ट थी। वो कहते थे बम और पिस्तौल कभी इंक़लाब नहीं ला सकते। उनके इंक़लाब की समझ के अनुसार जब तक किसी एक मनुष्य का किसी दूसरे मनुष्य द्वारा शोषण हो रहा हो तब तक इंक़लाब की लड़ाई बाकी है। उनकी आज़ादी का मतलब सिर्फ़ अंग्रेजों को देश से भगा देने भर तक सीमित नहीं था वो व्यवस्था परिवर्तन की बात करते थे। जान बूझ कर भगत सिंह को हिंसा की बहस तक समेटने की साज़िश की गई ताकि भगत सिंह को गांधी के विरुद्ध खड़ा किया जा सके जबकि भगत सिंह कहते थे कि अगर जेल से निकल पाया तो देश की स्वतंत्रता के लिए और व्यवस्था परिवर्तन के लिए जन-आंदोलन में शामिल होऊँगा।भगत सिंह के जिन साथियों को फाँसी नहीं हुई उनमें से ज़्यादातर लोग उस वक़्त की कॉम्युनिस्ट पार्टी में शामिल भी हुए। उनके जेल के साथी अजय घोष तो बाद में भारतीय कॉम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव भी बने।शुरू से ही भगत सिंह पर समाजवादी और साम्यवादी विचारधारा का गहरा प्रभाव था।भगत सिंह हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशियलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी करने का प्रस्ताव लेकर आए थे। इनकी वैचारिक स्पष्टता एक बड़ी वजह थी कि अंग्रेज किसी भी सूरत में भगत सिंह को फाँसी पर चढ़ाना चाहते थे। जब उनको फाँसी पर चढ़ाने के लिए सिपाही लेने आए तो उन्होंने कहा “थोड़ा ठहर जाओ एक क्रांतिकारी दुसरे क्रांतिकारी से मिल रहा हैI” उस वक़्त वो लेनिन की किताब ‘राज्य और क्रांति’ पढ़ रहे थे। भगत सिंह की जेल डायरी को हर किसी को पढ़ना चाहिए ताकि इस महान योद्धा को समग्रता में समझा जा सके। वो समझ सकें कि आज अगर भगत सिंह होते तो किसानों के फसल के दाम के लिए, बेरोज़गारों के काम के लिए, हर आवाम के लिए इस बेरहम सत्ता के सामने सर उठा कर लड़ रहे होते। सत्ता के सामने झुक जाना, समझौता कर लेना, माफ़ी माँग लेना, ये भगत सिंह होने के विरुद्ध है। इसलिए साथियों, न्याय के लिए, बराबरी के लिए अपनी आवाज़ बुलंद करना, किसानों के पक्ष में खड़ा होना, सबके रोज़गार के लिए लड़ना, किसी भी शोषण और अन्याय का डट कर मुक़ाबला करना ही शहीद ए आज़म भगत सिंह को सही मायनों में याद करना है। दरअसल भगत सिंह आज भी जनता के संघर्षों में ज़िंदा हैं।कतरास भगतसिंह चोक पर एक जुलूस के सकल में शोशल डिस्टेंस के माध्यम से भारी संख्या में लोग एकत्रित हो कर आदम कद प्रतिमा पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि दी।इस अवसर पर दिनेश महतो,दिलीप महतो,आनंद प्रमाणिक,प्रदीप ठाकुर,अरदीप सिंह,रोहित महतो,मो नासिर,मो नईम,सुभम प्रमाणिक,सुनील मोदक आदि शामिल थे।